बंद लबों पे हो जुंबिश, हो जुबां पे लरज़ ,
अश्क-ए -पा से छलक जाये गर आँख मेरी
टपक ही जाए गर छाला राह-ए -उल्फत का ,
जान जाना तू , अजनबी दोस्त मेरी
उसी काफ़िर ने फिर किया है याद मुझे ;
पर इस बार उसके दामन को तार -तार समझ ,
तर्क कर दूंगा उम्मीद दिल -नवाजी की ,
लौट आऊंगा उसी घर उसी दयार में
किसी मज़ार में दफ़न है जहाँ मोहब्बत मेरी
शुरू वहीं से हुई थी इक हसीं सी बात
अब उस बात का आगाज़ तक भी याद नहीं
है कहाँ वोह कहाँ मैं ,कौन बर्बाद नहीं ...
3 comments:
awesome :)
i am speechless totally...although have heard them from u.....pr waqt k sath aur bhi nikhar gayin hai....khuda kalm ko taufeeq de
i am speechless totally...although have heard them from u.....pr waqt k sath aur bhi nikhar gayin hai....khuda kalm ko taufeeq de
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