लौट आया हूँ आज फिर इक दिन तमाम कर के
वही टूटे हुए सपने अब कल के नाम कर के
चंद लोग भी मिले थे ,कई ज़िक्र भी रहे थे
लज़्ज़त नयी ही पाई ,खुद से कलाम कर के
मीना भी सामने थी .साकी भी कुछ हसीं था
हम तशना रहे फिर क्यूँ बा -कफ यह जाम करके ?
क्या उनकी हैं अदाएं .क्या शोखी -ए -इबादत
करें गैर को वोह सज्दा ,हमको सलाम करके
सरे राह ही मिलें वोह,बस साथ साथ हो लें
लुत्फ़ उम्र भर का ले लूँ ,यूँ सहर को शाम करके ......
4 comments:
BESTEST!
ab aur kiya kaha jaye 'Dila-zaarey Musafatt' padd ke,
yh gum bhi itna haseen sa, ki ibaadat karne ko dil kare......
ab aur kiya kaha jaye 'Dila-zaarey Musafatt' padd ke,
ki gum-e-khuda ki tauheen kyun karo aam baat keh ke....
ISS ANDAZ-E-BAYAN KO SALAAM
MERE AKS JAISE LAGTE HO
AB YAKEEN SA HO CHALA HAI
ITNE ACHCHE KYON LAGTE HO
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