तुम को देखूँ कि खुद से बात करूँ
इस हसीं दिन को कैसे रात करूँ
क़त्ल हो जाऊं और दम भी न निकले
तुम्ही कहो यह कैसे करामात करूँ
जिस में तू बा-वफ़ा निकले
अब तामीर वो कायनात करूँ
क्यूँ खुद को खुदा समझता था
ना-खुदा से कुछ सवालात करूँ
तुम साथ दो तो फिर क्यूँ ना
इसी सफर को असल-ए-हयात करूँ
जब उस हसीं से खेल ली बाज़ी
दिल कहे खुद ही अपनी मात करूँ
No comments:
Post a Comment