Wednesday, June 9, 2010

क्यूँ ही कल ?

ना अब जफा का ज़िक्र कर
ना अब वफ़ा का जवाब दे
रोज़े -हशर तो अभी दूर है
ना हिसाब ले ना हिसाब दे

कई पा चुका हूँ मैं राहतें
अरमां भी कितने निकल चुके
ला फिर पढूँ ज़रा गौर से
मुझे हसरतों की किताब दे

फिर सीख लूँगा मैं भूलना
अभी और थोड़ी शराब दे
मदहोश रात का फरेब फिर
मेरे यार का मुझे ख्वाब दे .....