Wednesday, October 6, 2010

इक़ बार फिर...

वह कहने लगे, आ जाना वहीं
इस बार तुम्ही हो सनम मेरे
हम गए, मगर अब क्या बोलें
के कितने सब्र से काम लिया

था इल्म हमे साकी है वहीं
और वहीं हमारा क़ातिल है;
लुटने की चाहत में हमने
उन्हीं से दोबारा जाम लिया

जब तर्के-वफ़ा का ज़िक्र चला
जब बात निभाने पर ठहरी,
हम तब भी मगर कुछ कह न सके
गो सब ने तुम्हारा नाम लिया

कुछ दश्त-ऐ-सफर की तारीकी
कुछ तन्हाई ,कुछ बेचैनी;
हाथ बढा कर तब हमने
खुद अपना बाजू थाम लिया

है चाक-गिरेबां मुद्दत से
सब बंद-ए- कबा हैं बिखरे हुए;
नये दौर की लैला से हमने,
वही पहले सा ईनाम लिया