Wednesday, November 10, 2010

जिंदगी

देखा इक मकाम पर
इस मोड से कुछ दूर
जलवा-ए जिस्म से
गोशा गोशा रोशन ,
बे-पनाह हुस्न पे इतराती हुई
इक महबूब कि मानिंद ,
दिल में इक राज़ लिए
खुद पे मुस्कुराती हुई,
इक हसीना जो बस इस
इंतज़ार में थी,
फलक के लाख सितारे
बा-सजदा होंगे अभी....
मगर इस कदर वोह
बदगुमाँ शाम ढली
लौटा ,के फिर  देखूं वो हसीन फज़ा
पर न वो रंग,वो नूर ,वो इतराना
न वो मेरी कही बात पे शर्मना
न वो ज़ुल्फ़ , न ख़म ,न काजल को लकीर
इक सियाही बरपा थी रूखे -रोशन पर
गर्द-ए-राहे सफर ही थी जूं नसीब उसका .....

मैं उस से पूछने ही वाला था कि कौन है तू
नज़र झुका के वोह बोली कि जिंदगी हूँ मैं .....