Saturday, March 19, 2011

और इक जवाब .....

हम आगाह थे ,था मालूम हमें
यह दिल टूटा ही करते हैं
यह सागर हैं ,रेज़ा -रेज़ा
सरे -महफ़िल बिखरा करते हैं ;
ऐसा ही हुआ ,कि इस दिल में
कोई शिकवा न मक्कारी थी
हर अश्क था मोती अपने लिए
हर जफा से पर्दादारी थी ....
ना कोई मुखोटा था अपना
न अफसाना गुमनाम कोई
न शर्मना दिखलाने को
न झूठी सी मुस्कान कोई ;
अब दोष नहीं धरना हर सू
अब कोई छान ना करना है
बस ख्वाब ही था अपना जीवन
यही सपना ले कर मरना है ......

यही सपना ले कर मरना है ........


इक सवाल ...

इस इश्क की बाज़ी में हमने
जब अपना पासा फेंका था
थी किस्मत अपनी मुट्ठी में
इक ख्वाब सुनहरा देखा था ;
यू लगता था बस नज़र मिली
और वोह अपने हो जायेंगे
कुछ सिमटे से लज्जाये से
इन बाँहों में सो जायेंगे ...
ऐसा ना हुआ,उन नज़रों में
चंद मीत पुराने बसते थे
थे हम भी कुछ अनजाने से
कुछ टेड़े मेडे रस्ते थे ......
अब जिस पर चाहे दोष धरो
अब चाहे जितनी छान करो
बाज़ी भी वही मुठी भी वही
क्या अब किस्मत से डरना है ?
अब तुम्ही कहो क्या करना है...