Saturday, March 19, 2011

इक सवाल ...

इस इश्क की बाज़ी में हमने
जब अपना पासा फेंका था
थी किस्मत अपनी मुट्ठी में
इक ख्वाब सुनहरा देखा था ;
यू लगता था बस नज़र मिली
और वोह अपने हो जायेंगे
कुछ सिमटे से लज्जाये से
इन बाँहों में सो जायेंगे ...
ऐसा ना हुआ,उन नज़रों में
चंद मीत पुराने बसते थे
थे हम भी कुछ अनजाने से
कुछ टेड़े मेडे रस्ते थे ......
अब जिस पर चाहे दोष धरो
अब चाहे जितनी छान करो
बाज़ी भी वही मुठी भी वही
क्या अब किस्मत से डरना है ?
अब तुम्ही कहो क्या करना है...









1 comment:

Anonymous said...

silence still remains the reply?????