Tuesday, November 2, 2010

मासूम सनम ......

 अपनी शब से तलिस्समों को मिटाना होगा
उनको सुबह के छलावों से मिलाना होगा

सर पे बोझ जफ़ाओं का लिए फिरते हैं
जो समझते थे कि क़दमों में ज़माना होगा

कितने भोले हैं सनम ,रकीबों से कहा करते हैं
हमें इक वादा -ए - वफ़ा भी तो निभाना होगा

शबे - फुर्क़त की हकीकत ने जगाया है जिसे
उसको ख्वाबों के दरीचों में बुलाना होगा

इस लुटे दर पे भला आज यह दस्तक क्यूँ है
उठ के देखूं , यह वही चोर पुराना होगा

1 comment:

Anonymous said...

no words to say,.......