Tuesday, June 21, 2011

बस

कभी कभी मुझे लगता है कि बस जी भी चुकें ......

खत्म हों यह सिलसिले रूठ जाने के
निपट लें दास्ताने फिर मनाने की
किसी आगोश में दम भर सिमटने की तड़प
रुख -ए-रोशन के आईने में संवर जाने की ;
खत्म हो मेरी मीना,जाम हों खाली
सब्र हो मुझे अपनी अदम सी प्यास के साथ
न कोई नज़र , न नज़र  में नज़ारे ही हसीं
न आज गुज़रे मेरा आज कल की आस के साथ;
खत्म हो यह स्याही ,सूख जाए कलम
न हाथ जुम्बिद ,न लब पे आह सी हो
न कोई देख सके फिर अजब सी चाहत से
न अंधेरों से नुमाया इक नई राह सी हो ;

कभी कभी मुझे लगता है कि बस जी भी चुकें.....

1 comment:

Anonymous said...

abhi baaki hai silsile....kuch aur jeena baki hai ...