Saturday, November 13, 2010

शराब-ए-कोहना

उनकी हया से पूछें कि उनके हिजाब से
कर लें क्या मोहब्बत अब हम जनाब से

आँखों में आँखें आपकी फिर क्यूँ न डाल दें
बनती नहीं है बात कुछ जानम शराब से

लोग उनकी पहेली को अलग बूझते रहे
खड़े हम भी थे परेशां इस इंतखाब से

कहने लगे के दिन में न होना रु -ब -रु
ज़ायदा  हसीन लगते हो अपने ही ख्वाब से

देखें क्या करेंगे वोह हम से अब सवाल
कुछ कांप से गए हैं मेरे पहले जवाब से

पूछती है अपने ही माहताब से किरण
यह कौन निकल आया दिन में नकाब से

1 comment:

Anonymous said...

kiya ulfat hai ......amazing