Tuesday, November 16, 2010

तुम ही कहो ...

तुम को देखूँ कि खुद से बात करूँ
इस हसीं दिन को कैसे रात करूँ

क़त्ल हो जाऊं और दम भी न निकले
तुम्ही कहो यह कैसे करामात करूँ

जिस में तू बा-वफ़ा निकले
अब तामीर वो कायनात करूँ

क्यूँ खुद को खुदा समझता था
ना-खुदा से कुछ सवालात करूँ

तुम साथ दो तो फिर क्यूँ ना
इसी  सफर को असल-ए-हयात करूँ

जब उस हसीं से खेल ली बाज़ी
दिल कहे खुद ही अपनी मात करूँ

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